बुधवार, 19 सितंबर 2007

मानवता वा दानवता

मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसे इस मृत्युभुमी पर सबसे ज्यादा सर्वोपरि का दर्जा प्राप्त है। यही वह प्राणी है जिसे सोचने समझने कि इतनी ज्यादा शक्ति प्राप्त है। फिर मानव का यह रूप जब कुछ इस कद्र ओछापन की हद पार जाये तो इसे दानव का ही रूप समझा जाता है। आज निठारी काण्ड एक ऎसी घिनोनी हरकत है जो इस मानव समाज वा मानव रूप को भादव कि पूर्ण अमावस से भी ज्यादा विकराल ओर अँधेरी रूप प्रकट करती है।
आज के इस वैज्ञानिक ओंर आर्थिक युग मे जब सारी मानव जाती नई-२ खोज चाहे वो चाँद पे जाने कि बात हो वा फिर एक नई पृथ्वी बसाने की खोज। ईन सबसे परे हमारे मानव जाती के मोहिंदर ओर सुरेन्द्र कि सोच ओर दानव्तापूर्ण ये हरकत सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम मानव का अब यही काम है। छी ये तो हमारी मानवता को ही समाप्त करने वाली घिनोनी हरकत दिखती है। ये एक ऐसी दुसाहश है जो हमे मानव कहने मे भी सर्मिन्दगी मह्सुश करता है। बात सिर्फ इनकी नही वाल्की इनके जैसे सोच रखने वाले सारे मानव से है। कुकर्म के ईन साहजदों को कभी सुकर्म से सामना हुआ वा नही यह भी एक अनूठा रहस्य ही है। आज यह एक ऐसा प्रस्न है जिसे संपूर्ण मानव को गंभीरता से सोचने पर मजबूर करती है। क्या मानव का यह दानवता वाली रूप हमारी मानव समाज भूल सकती है? सायद कभी नही....ओंर लाजमी भी यही है। क्या इस तरह कि हरकतें इन्हें सजा मिलने के बाद थम जायेगी ? क्या यह एक घटना ही घोर अपराध नही?
सुकर्म तो वो krte है जो kukrm के नाम से sharmate है ईन्होने तो वो कुकर्म किया जिससे महा कुकर्म भी शरमाते है

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