गुरुवार, 20 सितंबर 2007

व्यर्थ का फतवा

ऐसा लगता है की देश ओर विदेश के कुछ उलेमा बैठे-बैठे फतवा जरी करने के आदत से ग्रस्त हो गए हैं। इसका एक तजा उदाहरण सलमान खान पे भी देखा जा सकता है। ओर भी ना जाने गाहे-बगाहे ऐसे कितने फतवा जरी किए जाते है जिसकी पुरी जानकारी तो हमारे पास सायद होगा भी नही। आप को याद दिलाना चाहूँगा तसलीमा पे जारी फतवा के बारे मे भी। पहले तो उन्हें अपना देश इसी फतवा के वजह से छोरना परा देश छोरने के बाद भी फतवा इनका पीछा नही छोरा इसका जीता जगता उदहारण हैदराबाद मे देखने को मिला। ऐसी ही एक फतवा की शिकार मुजफरनगर की ईमराना भी हुई। जो अपने ससुर के हवश का शिकार होने के बाद उसे आपने ससुर को पति ओर पति को बेटा मानने को कहा ओर ऐसा ना करने पे उसे भी फतवा जारी करने की धमकी मिली। फतवा प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने फोटोग्राफी को शरीयत कानूनों के खिलाफ करार देते हुए इस पर पाबंदी लगाने वाला एक फतवा जारी किया। हालांकि, समझा जाता है कि संस्था ने खुद अपने छात्रों और कर्मचारियों को फोटो पहचान पत्र जारी कर रखे हैं। दारुल-उलूम के सूत्रों के मुताबिक 4 मौलवियों ने व्यवस्था दी कि फोटो खींचना या खिंचवाना शरीयत के तहत गैरकानूनी है। पाबंदी को कानूनी रूप नहीं दिया जा रहा है तो सिर्फ इसलिए कि आमतौर पर फोटोग्राफी काफी चलन में है। इन मौलवियों में फतवा विभाग के प्रमुख मुफ्ती हबीबुर्रहमान के अलावा मुफ्ती महमूद, मुफ्ती जैनूलइस्लाम, मुफ्ती जैफुरुद्दीन शामिल है। यह फतवा असम के एक सामाजिक संगठन द्वारा फोटोग्राफी को लेकर उठाए गए सवाल के जवाब में आया है।गौरातालाब है कि यह विवादास्पद फतवा ऐसे समय में आया है, जब देश मे पवित्र रोजा चल रहा है। लाखों मुसलमान हज की यात्रा पे जाते हैं। और उनके पास फोटो वाले पासपोर्ट होते हैं । उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों ने फोटोग्राफी को इजाजत दे रखी है और उनकी सरकारों ने अपने नागरिकों को फोटो वाले पासपोर्ट और पहचान पत्र जारी कर रखे हैं।इस बीच, शरीयत अदालत के एक सदस्य और उत्तर प्रदेश इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती जुल्फिकार ने कहा कि फोटोग्राफी के शरीयत कानून के खिलाफ होने के बावजूद इससे बचा नहीं जा सकता, क्योंकि आमतौर पर यह काफी इस्तेमाल किया जाता है। फिर भी, लोगों को आपत्तिजनक तस्वीरों और गैर-जरूरी फोटोग्राफी से खुद को दूर रखना चाहिए। कहा जता है की अति सर्वत्र वर्जयेत तो क्या आप को नही लगता की फतवा का यह व्यर्थ फरमान हो रहा है? ऐसा लगता है की इस फतवा के आर मे गुमनाम उलेमा आपने नाम को जग जाहिर करना चाहते हैं। कोन जानता था बरेली के उस फारुख को जिसने सलमान पे फतवा जारी किया? क्या आप जानते थे? क्या प्रवाल्प्रताप जानते थे? क्या दीपक चोरासिया जानते थे? शायद कोए नही। परन्तु आज इन्हे साड़ी दुनियां जानती है। क्या आप को नही लगता की यही नाम कमाने के लालच मे ये फतवा जारी करते हैं। वाह रे फतवा, वाह रे उलेमा. इस का एक उदाहरण है दारुल उलूम की ओर से जारी वह फतवा जिसमे सह शिक्छा को गैर इस्लामी ओर गैर क़ानूनी करार दिया गया. आख़िर किसी उलेमा को यह अधिकार किसने दिया वह जिसे चाहे उसे गैर क़ानूनी करार दे? उच्च न्यालय की आपतियों के बावजूद कुछ उलेमा जिस तरह अपने मनमाने निर्णय को देश वासियों पर थोपने की चेष्टा कर रही है उसका विरोध होना हीं पर्याप्त नही है. इसके साथ कुछ ऐसी व्यवस्था बनाने की भी जरुरत है जिससे वे बेवजह के फतवा जारी ना कर सके. ओर ऐसा तब होगा जब मुस्लिम समाज अनर्गल फतवा के खिलाफ खुलकर खरा होगा .

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